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Breaking Down the Misconceptions: Understanding the Truth about गलतफहमी

सुबह 7 बजे सौरभ की आंखें खुलीं तो उसने देखा कि नेहा बिस्तर के पास खड़ी अपने कपड़े ठीक कर रही थी।

"एक बार गले तो लग जाओ," सौरभ ने नींद भरी आवाज़ में कहा।

"बाद में लग लेना, अभी मुझे बाथरूम जाना है," नेहा ने हड़बड़ी में अपने बालों का जूड़ा बांधते हुए कहा और वहां से जल्दी निकल गई।

सौरभ ने करवट बदली, तभी उसका हाथ नेहा के अंदरूनी कपड़ों पर पड़ गया। वह कपड़े उठाकर देख ही रहा था कि एक अजीब से दाग ने उसका ध्यान खींच लिया।

"यह दाग तो..." सौरभ का दिमाग ठहर सा गया। उसके मन में सवाल उठने लगे। उसने नेहा की ब्रा और बाकी कपड़ों को भी ध्यान से देखा, लेकिन वही दाग हर जगह मौजूद थे।

"कल रात तो मैंने इनका इस्तेमाल नहीं किया। आखिर ये निशान आए कैसे?"

सौरभ का माथा ठनकने लगा। वह बेचैन होकर बिस्तर से उठ गया।

"क्या नेहा मुझसे कुछ छुपा रही है? क्या कोई और..." यह ख्याल उसके दिमाग में गूंजने लगा।

लेकिन तुरंत ही उसने खुद को शांत किया, "नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। नेहा मेरे साथ इतनी खुश रहती है। मैं ही बेवजह शक कर रहा हूं।"

नेहा बाथरूम से बाहर आई, तो सौरभ को परेशान देख उसने पूछा, "क्या हुआ? ऐसे क्यों देख रहे हो?"

"कुछ नहीं... बस ऐसे ही," सौरभ ने बात टाल दी।

लेकिन दिनभर यह सवाल सौरभ के दिमाग में घूमता रहा। उसने तय किया कि वह सीधे नेहा से बात करेगा।

रात को जब दोनों खाने के बाद बैठकर टीवी देख रहे थे, सौरभ ने कहा, "नेहा, एक बात पूछूं?"

"हां, पूछो," नेहा ने मुस्कुराते हुए कहा।

"वो... तुम्हारे कपड़ों पर जो निशान हैं, वो कैसे आए?" सौरभ ने हिचकते हुए पूछा।

नेहा का चेहरा अचानक गंभीर हो गया। वह कुछ देर तक चुप रही, फिर बोली, "सौरभ, तुम क्या कहना चाहते हो?"

"मैं कुछ नहीं कह रहा। बस जानना चाहता हूं," सौरभ ने सफाई दी।

नेहा ने गहरी सांस ली और बोली, "सौरभ, तुम्हें सच बताने का वक्त आ गया है।"

सौरभ का दिल जोर से धड़कने लगा। "क्या मतलब?"

नेहा ने कहा, "तुम्हें याद है, पिछले महीने मैंने कहा था कि मेरी एक पुरानी दोस्त मुझसे मिलने आई थी?"

"हां, तो?"

"वह दोस्त नहीं थी। वह मेरे ऑफिस की साथी रेखा थी। उसकी एक पालतू बिल्ली है। जब वह हमारे घर आई, तो वह बिल्ली उसके साथ थी। मुझे डर था कि तुम बिल्ली को देखकर परेशान हो जाओगे, इसलिए मैंने तुमसे छुपा लिया। ये दाग उसी बिल्ली के पंजों के हैं। उसने मेरे कपड़ों पर खेलते हुए खरोंच दी थी।"

सौरभ को समझ नहीं आया कि वह क्या कहे। उसने राहत की सांस ली और हंसते हुए बोला, "तो यह सब उस बिल्ली का किया धरा है!"

"हां," नेहा ने मुस्कुराते हुए कहा। "तुम्हें मुझ पर शक हो रहा था, न?"

सौरभ ने शर्मिंदा होकर नेहा को गले लगा लिया। "मुझे माफ कर दो। मैं बेवजह शक कर रहा था। अब कभी ऐसा नहीं होगा।"

नेहा ने उसे गले लगाते हुए कहा, "शादी में सबसे बड़ी बात भरोसा होती है। अगली बार, पहले मुझसे बात करना, ऐसा कुछ भी सोचने से पहले।"

उस रात दोनों ने अपने बीच की गलतफहमी को दूर कर दिया। सौरभ ने मन ही मन तय किया कि वह अब नेहा पर कभी शक नहीं करेगा और हर छोटी-बड़ी बात उसे साफ-साफ बताएगा। दोनों की हंसी और प्यार से भरी जिंदगी फिर से पटरी पर लौट आई।


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